सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

कृष्ण की नगरी की लीला......

वृन्दावन में विधवाओ के प्रति जो निर्दयिता बरती जा रही है
 ये जानकर वास्तव में रोंगटे खड़े हो गए भगवान कृष्ण की
भूमि पर ये अत्याचार कैसे हो सकता है क्या विधवा होना न होना किसी स्त्री
के वश में है या सिर्फ उन्हें पति के उपभोग का साधन मात्र माना गया है
जिसकी उपयोगिता पति की मृत्यु के बाद ही खत्म हो जाती है क्या परिवार जहा
वो पैदा हुई या ब्याहि गयी उन परिवारों के लिए भी वो बेकार की वस्तु  हो जाती है अगर जीवन और मृत्यु इश्वर की इच्छा पर निर्भर करती है तो पति की मौत का दोष या दुर्भाग्य का कारण पत्नी को क्यों माना जाता है कुछ समय
पहले ओपरा विम्फ्रे की होस्ट भी वृन्दावन के दौरे पर गयी विकासशील और
आधुनिक होने के झूठे नाटक करते भारत में इन विधवाओ की ये दशा देख कर वो
अवाक् दिखी की जहा एक तरफ इंदिरा गाँधी,सोनिया गाँधी जैसी महिलाये जो पति
के न होते हुए भी समाज और देश में इतनी सशक्त भूमिका में दिखती है वही ये
विधवाए किसी आश्रम या सड़क किनारे भीख या दान के चंद दाने चावल और दाल के
सहारे जिंदगी गुजार रही है वही ये खबर दहलाने वाली है की समाज द्वारा
अभागिन और अपशगुनी घोषित इन विधवाओ की मृत्यु के बाद इनके शरीर के टुकड़े
टुकड़े कर सिर्फ इस लिए फेक दिया जाता है की इनके क्रियाकर्म का पैसा नही
 होता ,सामाजिक प्राणी होने के नाते ये हम सबके लिए बेहद शर्म की बात है
या कहे डूब मरने की जहा आज हमारे बॉलीवुड का एक  वर्ग सनी लिओने जैसी
महिला को जो वास्तव में समाज के लिए खतरा है उन्हें समाज में सम्मान दे
रहे ही वही इन बेचारी विधवाओ को  न सम्मानित जीवन दे प् रहे है और न ही
मौत  .............
                  

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

महत्वाकांक्षा.................


आप सबने पूनम पांडे के बारे में ज़रूर सुना होगा जिसने कुछ समय पहले भारतीय क्रिकेट टीम के वर्ल्ड कप जितने पर अपने कपडे उतारने की बात कही थी अपने इस बयान के कारण वो कुछ दिनों तक अखबारों की सुर्खियों के साथ-साथ न्यूज़ चंनेलो में भी बनी रही ये बात अलग है की सुनने वाले ज्यादातर लोग उसे गलियां ही दे रहे थे लेकिन सोचने वाली बात ये है की ऐसा करने से पूनम को क्या हासिल होने वाला था तो वो थी सस्ती व जल्द मिलने वाली प्रसिद्धि की महत्वाकांक्षा, महत्वाकांशी होना कही से गलत नही है लेकिन इसकी अधिकता अक्सर हमारी सही-गलत सोचने की क्षमता को नष्ट कर देती है जल्दी से जल्दी बड़ी कामयाबी पाने को  आतुर युवा पीढ़ी को पिछले दिनों हुए गीतिका कांड से सबक लेना चाहिए की असीमित महत्वाकांशा के चलते ही गीतिका जैसी होनहार लड़की को असमय काल के गाल में समाना पड़ा.
महज़ सत्रह साल की गीतिका हरियाणा के पूर्वमंत्री गोपाल गोयल कांडा की एमडीआरएल एयरलाइंस में ट्रेनी केबिन क्रू की तौर पर नियमों के विपरीत जा कर रक्खी गयी कहा जाता है ये सिर्फ कांडा के कहने पर किया गया था इसके बाद तो जैसे गीतिका की कामयाबी को पंख ही मिल गये और इसके तहत सिर्फ बाईस साल की गीतिका एक एयरलाइंस कंपनी की डरेक्टर के पद पर पहुच गयी जिसे हासिल करने में लोगो को सालो लग जाते है लेकिन ये सालो का फासला गीतिका ने कांडा की सरपरस्ती में दो तीन सालो में ही तय कर लिया लेकिन इस बेलगाम महत्वाकांक्षा व् कांडा की मनमानी फर्माइशो ने जल्दी ही गीतिका को अहसास करा दिया की वो बुरी तरह फस चुकी है कहा जाता है की इस दौरान गीतिका को कांडा व् कई अलग-अलग लोगो के साथ हमबिस्तर तो होना ही पड़ा साथ ही अबोर्शन जैसी दर्दनाक तकलीफों से भी गुज़ारना पड़ा और इन हालातों ने कुल मिला कर उसके जीने की इच्छा को खत्म कर दिया और गीतिका ने आत्महत्या कर इस मानसिक यंत्रणा को विराम दिया,ठीक गीतिका जैसा ही अंजाम हुआ था युवा कवित्री मधुमिता शुक्ला का 9 मई 2009 को मधुमिता को उसके लखनऊ स्थित आवास पर उस समय गोलियों से भून दिया गया जब वो सात माह के गर्भ से थी,इस युवा कवित्री ने भी जल्दी-जल्दी सफलता के पायदान चढ़े जिसके लिए मधुमिता ने हाथ थामा बहुजन समाजवादी पार्टी के नेता अमरमणि त्रिपाठी का,ये अमरमणि का ही प्रभाव था की जल्दी ही मधुमिता उन कवि सम्मेलनो की दिखने लगी जहाँ प्रदेश व् देश के नामी और दिग्गज कवि बैठे होते थे और जिनमे से ज़्यादातर यही मानते थे की मधुमिता की कविताए इस स्तर की नहीं है की उसे दूसरे प्रतिष्ठित कवियों के समकक्ष दर्जा दिया जाये लेकिन ये दर्जा अमरमणि के राजनैतिक प्रभाव के चलते मधुमिता ने हासिल किया लेकिन इस दौरान मधुमिता ने भी इसकी कीमत अदा की और कई बार अमरमणि से गर्भवती हुई लेकिन हर बार उसे अमरमणि के राजनितिक भविष्य व् इज्ज़त की दुहाई के चलते गर्भ गिराना पड़ा अंततः मधुमिता मात्रत्व की भावना के हाथों मजबूर हुई और इस बार फिर गर्भवती होने के पर उसने बच्चे को जन्म देने का द्रण निश्चय किया लेकिन माँ बनने की ये इच्छा ही मधुमिता के लिए जानलेवा साबित हुई और सात महीने की इस गर्भवती को गंद्दी राजनीती के अंधेरो ने लील लिया हालाँकि हत्या के आरोप में अमरमणि त्रिपाठी अपनी पति मधुमणि त्रिपाठी के साथ आज भी जेल में है, उन्हें बचाने की कोशिशे आज भी जारी है पर कोर्ट ने अपना फैसला बरक़रार रखा,तीसरी दुखद कहानी है फिज़ा और चाँद की हरियाणा के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और सहायक महाधिवक्ता की अचानक जन्मी प्रेम कहानी और विवाह ने राजनीतिक गलिहारो में सनसनी पैदा कर दी प्यार की इस शिद्धत का अंदाज़ा आप इसी बात से लगाये की इस शादी के लिए अनुराधा बाली और चंद्रमोहन ने अपना धर्म परिवर्तन तक कर लिया क्योकि हिंदू या सिख धर्म बहुविवाह की इजाज़त नहीं देता धर्म परिवर्तन के बाद अनुराधा बाली जहाँ फिजा मोहम्मद बनी वही चंद्रमोहन बने चाँद मोहम्मद सिर्फ शादी के लिए किये गए इस धर्मपरिवर्तन का मुस्लिम धर्म गुरुओ द्वारा काफी  विरोध भी किया गया लेकिन इन सबसे ज़्यादा असरदार विरोध रहा चाँद मोहम्मद उर्फ चंद्रमोहन के पिता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल का,भजनलाल द्वारा चंद्रमोहन से सभी प्रकार के रिश्ते तोड़ लिए जाने की घोषणा की गयी जिसके चलते उन्होंने चाँद को अपनी जायदाद से भी बेदखल कर दिया और पिता के इस पैतरे का असर भी जादुई था चाँद और फिज़ा अभी गिनती के कुछ ही दिन साथ बिता पाए थे की पिता की जायदाद और नाम से बेदखल चाँदमुहम्मद को फिर से अपनी पूर्व पत्नी का प्यार और बच्चो की याद सताने लगी और फिर एक दिन चाँद मोहम्मद अचानक गुम हो गए बाद में वो प्रकट हुए गुड़गावं के एक बिश्नोई मंदिर में और वहाँ कई हिंदू धार्मिक नेताओ की उपस्तिथि में उन्हें एक बार फिर धर्म परिवर्तन कर हिंदू बनाया गया और बिश्नोई समाज में शामिल किया गया यहाँ चाँद मोहम्मद को तो चंद्रमोहन बन फिर से वो सब कुछ हासिल हो गया जो उसने खोया था लेकिन चंद्रमोहन के प्यार में पड़ अपनी नौकरी,पद व् अपनों का साथ गवां चुकी फिज़ा उर्फ अनुराधा एक दम अकेली पड़ गयी बल्कि भयानक अवसाद का शिकार भी हो गयी जिसके चलते आये दिन न्यूज़ चंनेलो में कभी पड़ोसियों से मारपीट तो कभी दूसरे पंगे की खबरे आने लगी और इसी अवसाद के चलते अनुराधा ने 4 अगस्त 2012 को अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली आत्महत्या के तीन चार दिनों बाद अनुराधा की बुरी तरह से सड़ चुकी लाश बेडरूम से बरामद की गयी,जिसने भी सुना उसकी ज़बान पर  यही था की महत्वाकांशा के चलते एक और बलि चड़ी,राजस्थान के जोधपुर की एक महत्वाकांशी एएनएम्(मिडवाइफ) भंवरीदेवी जालिवाडा के एक स्वास्थकेंद्र की साधारण लेकिन खूबसूरत इस मिडवाइफ ने अपनी असाधारण महत्वाकांशा को पूरा करने के लिए लंबी छलांग लगाने कि सोची और इसके लिए इसने सहारा लिया पूर्व जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा के कंधो का जिसके चलते कुछ ही दिनों में भंवरी ने अच्छी खासा रोब और रुतबा हासिल कर लिया रुतबे का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की जोधपुर में एक बंगले की मालकिन भंवरी के पास  बरौदा में शानदार दो मंज़िला माकन था वही भंवरी के पास ड्राइवर के साथ एक लग्ज़री कार थी वही भंवरी के पति अमरचंद के पास भी अलग लग्ज़री कार थी सितम्बर 2011 में भंवरी के गायब होने के बाद तफ्तीश के दौरान जब भंवरी के दोनों मकानों की तलाशी ली गयी तो वहा पर पुलिस को दर्जनों विदेशी परफ्यूम और ढेरो विदेशी सामान मिले कहा जाता है की भंवरी अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की भी सोच रही थी अपनी इस ताकात को बढ़ाने के लिए भंवरी ने मदेरणा को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया था भंवरी इसके लिए अपने और मदेरणा के अन्तरंग क्षणों की सीडी का इस्तेमाल किया और अंततः यही सीडी व् असीमित महत्वाकांशा भंवरी को ले डूबी भंवरी केस ने जब मीडिया के बीच तूल पकड़ी तो युद्ध स्तर पर उसकी तलाश शुरू की गयी लेकिन उसके शरीर की कुछ हड्डियों के छोटे-छोटे टुकडो और उसकी घडी के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ कुल मिलाकर ये कुछ ऐसी घटनाये है जिन्होने समय-समय पर सबको हिला कर रख दिया है लेकिन इनके लिए वो लोग तो दोषी है ही जिन्होंने इन्हें अंजाम दिया इसके अलावा इन् महत्वाकांशी महिलाओ के परिवार और ये महिलाये खुद भी अपने साथ हुए इन् घटनाओ की जिम्मेदार है जल्दी-जल्दी सफलता के पायदान चढ रही गीतिका ने ये क्यों नहीं मंथन किया कि कांडा की इस खास मेहरबानी कि वजह क्या है या गीतिका के परिवार वाले भी इस ओर आंखे बंद किये हुए थे वही मधुमिता,अनुराधा और भंवरी देवी भी काफी  हद तक खुद भी दोषी थी क्योकि इन्होने सफलता के लिए रिश्तों का इस्तेमाल किया था लेकिन जब इन् रिश्तों के लिए ये संजीदा हुई तो इसका हश्र मौत के रूप में सामने आया,हमारी युवा पीढ़ी के लिए ये पाठ की तरह है कि महत्वाकांक्षा के साथ-साथ अपने मन-मस्तिष्क पर नियंत्रण कि ज़रूरत होती है जो हमे सही और गलत सोचने का मौका देती है साथ ही अभिभावकों के लिए भी एक नसीहत की वो भी अपने बच्चो को सही गलत का फर्क बताते रहे न की उनकी सफलता के नशे में खुद ही डूब जायें..........      


गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

लाडो इस देस न आना



मेरे भाई साहब की दो प्यारी सी बेटियाँ है एक सात साल की और दूसरी चार साल की पढने लिखने में बेहद तेज़ या यूँ कहिये उन दोनों के आने के बाद हमारे घर में खुशियों के साथ -साथ लक्ष्मी जी ने भी कदम रक्खा था मुझे याद है जब भइया की पहली बेटी सौम्य हुई थी हम जिसको-जिसको फोन किया था उसने हमे बधाइयाँ दी थी लेकिन जब चोटी बेटी अनुष्का हुई तो फोन करने पर सांत्वना मिली समझ नही आया की लोगो ने ऐसा क्यो किया लेकिन आज समझ आता है की लड़कियों के लिए हमारा देश कितना ही आधुनिक क्यो न हो जाए लेकिन लड़कियों के लिए यहाँ के लोगो की मानसिकता नही बदलेगी दूर दराज़ के गॉंव देहात की तो जाने दीजिये शहरो के आधुनिक कहे जाने वाले लोगो की सोच भी
अभी वही की वही है अखबारी आंकडे देखे तो लगभग रोजाना एक-दो नवजात बच्चियां यहाँ वहा पड़ी मिलती है कही पन्नी में लिपटी तो कही बिना कपड़ो के नाले के किनारे जहा उन्हें चीटियाँ नोच रही होती है सोचती हूँ जहा मै अपने दो माह के बेटे को इन सर्दियों में चौबीसों घंटे गरम कम्बलों के बीच ब्लोवर में रखती हूँ वही इस हांड कंपा देने वाली सर्दी में वो बच्चियां कितनी तकलीफ झेलती रही होंगी,क्यो लड़कियों का जीवन ही इतना संघर्ष से भरा होता है हर अवैध संतान लड़की तो नही होती सच कहे तो बच्चे कभी अवैध नही बच्चे तो बच्चे होते है लेकिन हमारा देश जहा था वही है बस तरीके बदल गए है अब दूध में डूबा कर या गला दबा कर मारने की जगह थोडी सवेदना दिखाते है अब जिंदा फेक देते है कुत्तो के नोचने घसोटने या चींटियों या अन्य कीडे-मकोडों का आहार बनने के लिए.